उत्तराखंड के प्रमुख मंदिर 


उत्तराखंड को देवभूमि नगरी कहा जाता है और यहां पर आपको हर एक स्थान पर छोटे-छोटे मंदिर देखने के लिए मिल जाएंगे।


केदारनाथ मंदिर

महाभारत के वन पर्व में केदारनाथ को भ्रगतुंग कहां गया है। भगवान शिव का या मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ है और यहां भगवान के शिव की पिछले भाग की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने कराया। आदि गुरु शंकराचार्य नयनार संत और शैव धर्म प्रचारक थे संख्या 63 बताई गई है। शिवतीर्थ पशुपतिनाथ नेपाल में दूसरा कुमाऊं में जागेश्वर गढ़वाल में केदारनाथ चौक हिमाचल प्रदेश में बैजनाथ तथा 5 व तीर्थ कश्मीर के अमरनाथ में है l

केदारनाथ भगवान के रक्षक भैरव देवता है केदारनाथ भगवान की पूजा ब्रह्म कमल पुष्पों से की जाती है और केदारनाथ मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3584 ऊंचाई पर है। केदारनाथ का मंदिर खर्चा खंड ओर भरतखंड केदारनाथ पर्वत के मध्य है। केदारनाथ मंदिर समिति का मुख्यालय उखीमठ में है। केदारनाथ मंदिर समिति का गठन 1948 में हुआ काल में बद्रीनाथ और केदारनाथ अधिनियम 1939 पारित हुआ।


केदारनाथ धाम की विशेषताएं

केदारनाथ मंदिर कत्यूरी शैली का है और मंदिर के निर्माण में भूरे रंग की पत्थरों का प्रयोग हुआ है मंदिर के गर्भगृह के त्रिकोण आकृति के ग्रेनाइट सिला जिसकी पूजा भक्तगण करते हैं केदारनाथ में भगवान शिव की पांच मुख वाली प्रतिमा है। केदारनाथ मंदिर 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर बना है इस मंदिर पर नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान है और केदारनाथ मंदिर के पुजारियों को रावल कहा जाता है जो मैसूर के जंगम ब्राह्मण के हैं जिन का निवास स्थान उखीमठ में है। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि महाशिवरात्रि पर्व पर घोषित की जाती है भैया दूज दीपावली में केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं। शरद ऋतु में केदारनाथ भगवान का निवास स्थान उखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर में है।

18 वीं शताब्दी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।





केदारनाथ धाम में दर्शनीय स्थल केदारनाथ मंदिर में मिलने वाले कुंड में प्रमुख कुंड शिव कुंड है और यह कुंड लाल पानी वाला रुधिर कुंड भी है। मंदिर के पृष्ठ भाग में अमृत कुंड और पूर्वी भाग में रेट्स और हंस कुंड और मंदिर के सामने छोटे मंदिर में उदक का कुंड है।

मंदिर के कुछ दूरी पर महाशिला है और जिसे स्थानीय भाषा में भैरव छाप भी कहते हैं यही निकट ही गांधी सरोवर तथा वासु की ताल है गुरु शंकराचार्य का समाधि स्थल केदारनाथ के पास स्थित है केदार पुरी में फलाहारी बाबा का समाधि स्थल है।


बद्रीनाथ मंदिर

श्रीनाथ मंदिर को विशाल बद्री भी कहा जाता है जो भारत के चार धामों में से एक है और यहां चमोली में स्थित है यहां पर भगवान विष्णु की पूजा होती है। पुराणों में बद्रीनाथ को योग सिद्ध मुक्ति पर्दा, बद्री का आश्रम एवं विशाला कहां गया है। सतयुग में बद्रीनाथ क्षेत्र को मुक्ति प्रदा कहा जाता था। अलवर संत वैष्णव धर्म से संबंधित है जिनकी संख्या 12 थी। बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 31033 मीटर की ऊंचाई पर है बद्रीनाथ मंदिर पर नर अर्जुन व  नारायण विष्णु नामक दो पहाड़ियां हैं। बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर बसा है और बद्रीनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण अजय पाल के शासनकाल में हुआ बद्रीनाथ को पूर्ण भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी शासक को जाता है अजय पाल के बाद बद्रीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार ग्वालियर की नरेश दौलतराव सिंधिया ने मैं था भगवान बद्रीनाथ के रक्षक देवता क्षेत्रपाल है और बद्रीनाथ मंदिर के लिए भूमि दान में पदम् देव नामक व्यक्ति ने दी थी।


बद्रीनाथ धाम की विशेषता

बद्रीनाथ मंदिर के चार भाग है

गर्भ ग्रह, मंडप , गुबंदकर शिखर और सिंह द्वार।

मंदिर का सबसे पुराना गर्भ ग्रह है और मंदिर के अंदर 15 मूर्तियां स्थापित है गर्भ ग्रह में भगवान की 1 मीटर लंबी मूर्ति शालिग्राम की बनी है बद्रीनाथ मंदिर के लिए पूजा के लिए केरल से अचरज नारियल व सुपारी और कर्नाटक से चंदन आता है। बद्रीनाथ भगवान को भात का भोग लगाया जाता है और बद्रीनाथ मंदिर मुगल शैली की तरह विकसित किया गया है। बद्रीनाथ मंदिर का द्वारका आकार धनुष कार है इसलिए इस मंदिर को शंकुधारी शैली की तरह है बद्रीनाथ मंदिर की ऊंचाई 15 मीटर है। बद्रीनाथ मंदिर में रावल पुजारियों द्वारा पूजा की जाती है रावल पुजारी शंकराचार्य के वंशज है सीरियल में नंबूदिरि संप्रदाय के हम हैं शिव प्रसाद डबराल के अनुसार 1443 से 776 तक मंदिर के पुजारी हिंदी स्वामी होते थे दंडी शंकराचार्य के अनुयाई थे लेकिन ब्राह्मण नहीं थे। 1776 में गणेश नरेश ने रावल पद नंबूरी ब्राह्मण को दे दिया। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने का समय बसंत पंचमी के दिन निर्धारित किया जाता है और मंदिर के कपाट अक्सर अप्रैल महीने में खुलते हैं बद्रीनाथ मंदिर की मुख्य प्रतिमा खंडित रुप से काले रंग की है जिसे शंकराचार्य ने नारद कुंड से निकाला था शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की पूजा जोशीमठ नरसिंह मंदिर में होती है राज्य में सार्वत्रिक तीर्थयात्री बद्रीनाथ आते हैं बद्रीनाथ में कढ़ाई उत्सव मनाया जाता है।


बद्रीनाथ धाम के प्रसिद्ध स्थल

बद्रीनाथ धाम में तप्त कुंड में गर्म जल का कुंड है बद्रीनाथ के पास ब्राह्मण पाली में जहां हिंदू लोग के पितरों को पिंड अर्पित करते हैं 5 कुंड बद्रीनाथ में स्थित है तप्त नारद मनुषी त्रिकोण और सत्य पथ कुंड इसके अलावा बद्रीनाथ में पांच शिलाएं नरसिंह, नारद, गरुड़, ब्रह्म पाल और मार्कंडेय सिला।

बद्रीनाथ में 5 धाराएं भी स्थित है कुर्मी, इंदु, उर्वशी, भ्रुगू प्रहयाद। बद्रीनाथ मंदिर में तीन गुफाएं स्कंध गरुड़ व रामगोपाल स्थित है बद्रीनाथ के पास माणा गांव में मुचकुंद व्यास व गणेश गुफा उपलब्ध है। चरण पादुका नामक स्थान भी बद्रीनाथ के पास स्थित है।


गंगोत्री मंदिर


उत्तरकाशी जिले में भागीरथी के नदी तट पर मां गंगा का मंदिर है जिसे भागीरथी का मंदिर भी कहा जाता है इस मंदिर में गंगा लक्ष्मी पार्वती व अन्नापूर्ण देवी की मूर्तियां हैं। गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 1807 में करवाया था इस मंदिर का पुनरुद्धार जयपुर के राजा माधव सिंह ने 1935 में कराया था। गंगोत्री मंदिर के निर्माण कत्यूरी शिखर छात्र पगोड़ा शैली में है इस मंदिर का निर्माण में सफेद ग्रेनाइट का प्रयोग हुआ है। गंगोत्री मंदिर समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते हैं इस दिन गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है।

मां गंगा की पूजा से के शीत ऋतु में मुख्य गांव के मार्कंडेय मंदिर में होती है गंगोत्री मंदिर के कपाट दीपावली के दिन बंद होते हैं और गंगोत्री के पास भैरव घाटी में जानवी नदी भागीरथी नदी से मिलती है यहां एक चट्टान शिवलिंग के रूप में जल मग्न है जैसे टूटा हुआ शिवलिंग कहां जाता है। गंगोत्री मंदिर के पास भागीरथी सिन्हा और भैरव मंदिर है मंदिर के पुजारी मुखवा गांव के निवासी होते हैं। मंदिर की आग में 84 सिलाओ से पाट दिया गया है। जिसे पटनागढ़ कहते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने गंगा स्रोत का पता लगाने के लिए 1808 में कैप्टन रीपर को भेजा था। 1816 में जेपी फ्रीजर ने गंगोत्री और यमुनोत्री पहुंचने वाला प्रथम यूरोपियन था।


यमुनोत्री धाम

जो मंदिर उत्तरकाशी जिले में यमुना नदी के तट पर स्थित है सर्वप्रथम यमुनोत्री मंदिर का निर्माण सुदर्शन शाह ने 1850 में लकड़ी से बनवाया था और 18 सो 62 में भवानी साहनी यमुनोत्री मंदिर में पत्थर की यमुना मूर्ति स्थापित की।

आधुनिक यमुनोत्री मंदिर का निर्माण प्रताप सा द्वारा कराया गया और इसका पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने भी कराया था। मंदिर के कपाट प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल की तृतीय पक्ष में खुलते हैं। पी प्रवास में यमुना मां की टोली खर्चा निगाहों में रहती है जहां सोमेश्वर दीवाने हैं। 1816 में फ्रिजर यमुनोत्री मंदिर पहुंचा जहां पुजारी ने फ्रीजर को प्रसाद के रूप में माहै का पौधा दिया। मंदिर के निकट 3 धर्म कुंड है सूर्य कुंड प्रमुख है जहां चावल के दाने डालने से चावल पत्थरों पर आ जाते हैं हेलो प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं सूर्य कुंड को उत्तुंग चट्टान के पाद में स्थित है इसे ब्रह्म कुंड भी कहते हैं इस कुंड का तापमान 195 डिग्री फॉरेनहाइट है।

सूर्य कुंड से निकलने वाली विशेष ध्वनि को ओम ध्वनि कहते हैं यूरोपीय पर्यटक सूर्य कुंड की तुलना न्यूजीलैंड के गेसर से करते हैं। सूर्य कुंड के निकट दिव्य ज्योति सिला है यमुनोत्री से कुछ दूरी पर सप्त ऋषि कुंड है यमुनोत्री में यात्रीगण गौरी कुंड में स्नान करते हैं जमुना माई कुंड भी कहा जाता है। बंदरपूंछ पर्वत का प्राचीन नाम कालिंदी पर्वत था। बंदरपूंछ शिखर पर्वत तीन पर्वत के समुच्चय है श्रीकांत बंदरपूंछ और यमुना कौन था। यमुना का उल्लेख मैं 3 मार्च की गंगा का उल्लेख एक बार हुआ है यमुनोत्री समुद्र तल से 3235 2 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यमुनोत्री मंदिर का अंतिम मोटर अड्डा हनुमान चट्टी है और जानकीचट्टी अंतिम पड़ाव जिस का प्राचीन नाम 20 गांव है।