आपके मन में भी यह सवाल आया होगा  कि भारत के पास तो नोट छापने की मशीन है, तो  सरकार अनलिमिटेड पैसा क्यों नहीं चाहती, सरकार ज्यादा पैसा छाप कर  गरीबी क्यों नहीं दूर करती है,  सरकार ज्यादा पैसा छाप कर बेरोजगारी दूर क्यों नहीं करती है, अगर सरकार ज्यादा पैसा छापेगी तो कोई रोड पर भीख नहीं मांगेगा।

क्या आपको पता है सरकार ज्यादा पैसा क्यों नहीं चाहती, इसका जवाब हम आपको आज  इस वीडियो में  देने वाले हैं।



चलिए अब बात करते हैं कि सरकार अनलिमिटेड  पैसा क्यों नहीं चाहती है?

इस बात को जानने से पहले हमें  अपने देश के गुड्स और प्रोडक्ट के  बारे में जाना चाहिए।  हमारे देश में जितना भी  गुड्स का  प्रोडक्शन होता है। उसका रेट  हमारी कैडेंसी की बराबर होता है।

फॉर एग्जांपल

गवर्नमेंट ने अनलिमिटेड पैसा छाप कर  लोगों पर  दे दिया।   सभी लोगों के पास लाखों रुपए आ गए हैं।

एक दुकानदार  जो पहले किसी सामान पर  ₹5 की बचत करता था  अब उसके पास लाखों रुपए आ गए हैं।  वह दुकानदार अब उसी प्रोडक्ट को  डबल कीमत पर सेल करेगा।  जिससे प्रोडक्ट की वैल्यू  बढ़ती चली जाएगी  और पूरे देश में महंगाई  फैल जाएगी।

इसलिए गवर्नमेंट ज्यादा पैसा नहीं छापती है।

अधिक नोट छापना मतलब  अपनी अर्थव्यवस्था को आत्महत्या  कराना।

इतिहास भी गवाह है  एक बार एक राजा ने  अपने राज्य में  सिक्के  बनाने वाली मशीन का निर्माण किया, और जब इस मशीन के बारे में जनता को पता चला  तो कई लोगों ने  ऐसी ही मशीन का उपयोग करके  नकली सिक्के  को ढाल  दिया।  जिसके कारण राज्य में  सभी नागरिकों के पास  जमकर पैसा आ गया और राजा की  स्थिति अब खराब हो गई।  राजा ने फिर  सिक्के के ढालने का अधिकार  अपने पास ही रखा ओर  जो नकली सिक्के  बनाएगा उसी कड़ी से कड़ी सजा दी जाए  और यह बात आज तक  विश्व के हर देश फॉलो करते हैं।


विश्व के 2 देश  अनलिमिटेड  पैसा छाप कर गलती कर चुके हैं?

इनमें सबसे पहला नाम जर्मनी का है,  प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की  इकोनामिक कंडीशन  बहुत खराब हो चुकी थी, इसके लिए जर्मनी ने  कई देशों से  लूणी लिया था  और युद्ध में हार के बाद  लोन चुकाने  के लायक नहीं रहा था।  जर्मनी की गवर्नमेंट में  अपने देश की अनलिमिटेड कैरेंसी छाप दी, जिससे जर्मनी में महंगाई आसमान छूने लगी थी।

जिंबाब्वे ने भी  अपने देश में अनलिमिटेड कैरेंसी छाप कर  अपने देश में  महंगाई को बढ़ावा दे दिया, लोग ब्रेड और कोलगेट खरीदने के लिए बेग में पैसा भर भरकर ले जाते थे। जिसके कारण वहां की करेंसी वैल्यू घट गई।

पूरी दुनिया में यही कारण है  इसलिए कोई भी देश  अपने देश में अनलिमिटेड कैरेंसी नहीं छपता है।


भारत में पैसे छापने की मशीन कहां है?

दोस्तों आपके मन में एक यह भी सवाल आता होगा  कि भारत में पैसे छापने की मशीन कहां है।  भारत में पैसे छापने की मशीन  देवास, मैसूर, सालबुनी ओर  नासिक में है।

देवास मध्य प्रदेश में  नोट छापने की  इंक और 10, 50, और 500 के नोट  छापे जाते हैं।  देवास में 265 करोड रुपए  हर साल छपते हैं

मैसूर में  2000 के  नोट छपते हैं।  हमारे देश में  एक पेपर मिल, एक बैंक और 4 ट्सकाल है। 

टासकल मिल  देश के 4 शहरों में  मुंबई हैदराबाद  कोलकाता और नोएडा में है।

भारत में  नोट छापने के पेपर होशंगाबाद और  विदेशों से इनपुट कराए जाते हैं ।

भारतीय नोट में  तीन जगह का पेपर  इस्तेमाल किया जाता है।  महाराष्ट्र के पेपर नोट,  एमपी होशंगाबाद के पेपर मिल और  कुछ पेपर हम फॉरेन से  इनपुट करवाते हैं।


भारत में पैसा छपता कैसे हैं?

इंडियन करेंसी में यूज होने वाले पेपर को   साइमनटन

में डाला जाता है  और इसके बाद इसे दूसरी मशीन इंताबू  मशीन में डालते हैं।  मशीन से  निकाली गई नोट को  दो भागों में बांटा जाता है,  पुरानी पेपर को साइट कर दिया जाता है  और सही नोटों पर नंबर ऐड किया जाता है  और उसकी बाद सभी नोटों के  नंबर को  कंप्यूटर में चेक किया जाता है।

आपने हमेशा 500 2000 सभी नोटों में एक नंबर कोड देखा होगा।


पैसों का पेपर  किन किन देश में होता है?


  1. अमेरिका
  2. अमेरिका  पूरी दुनिया का एक जाना माना फेमस  देश है, और पैसों के मामले में और पीछे कैसे रह सकता है।
  3. अमेरिका के पोर्टल नंबर में पैसे तैयार करने वाली आधुनिक मशीन है।
  4.  फ्रांस
  5. फ्रांस के  पास भी  पैसे बनाने वाले कागज की  आधुनिक मशीन है।
  6.  स्वीडन के पास भी  कागज से बनने वाले पैसों की  मशीन है।
  7.  लूर्सेल के पास भी  कागज से पैसे बनाने वाली आधुनिक मशीन है।


भारतीय नोटों में  प्रयोग होने वाली  स्याही कहां से आती है?

होशंगाबाद से ही  4 स्टेट में बनने वाले रुपए  के लिए  स्याही जाती है।  नोट में उभरी हुई  स्याही  सिक्किम के  स्विस  फॉर्म की शिकपा में  बनाई जाती है।


जाने भारतीय नोटों को बनाने में कितना खर्च आता है?

आरबीआई की एक रिपोर्ट के   ₹200 के नोट बनाने में 2.34  रुपए खर्च होता है  और 500 के नोट बनाने में 2.40  रुपए खर्च आता है  जबकि 2000की नोट बनाने में 3.35  रुपए खर्च आता है।


पैसे लोगों तक कैसे पहुंचते हैं?

भारत का  एकमात्र सरकारी बैंक  आरबीआई  रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है  इसकी स्थापना 1935 में  की गई थी।  इसका मुख्यालय मुंबई में है।

भारतीय रिजर्व बैंक के  पूरे देश में 18  ऑफिस हैं अहमदाबाद, बेंगलुरु बेलापुर चेन्नई चंडीगढ़ भोपाल जयपुर हैदराबाद गुवाहाटी  कोलकाता भुवनेश्वर  कानपुर जम्मू कश्मीर, मुंबई  और  थरिवनतपुरम , गुवाहाटी  और पटना , लखनऊ।  आरबीआई इन सभी  ऑफिस में पैसे पहुंच जाता है  उसके बाद अन्य बैंकों में पैसा भेजे जाता है।  आरबीआई के पास  सारे मॉनेटरी पॉलिसी के  राइट है। वह अपने कार्यालय में बैठी कभी भी  महंगाई को बड़ा और घटा सकती है।

जब हम किसी बैंक से लोन लेते हैं  उसके बदले हमें बैंक को   ब्याज देना होता है  और यह बैंक भी आरबीआई से  पैसा लोन में रहते हैं  और उसके बदले उन्हें ब्याज देते हैं।  एक रुपए के सिक्के को छोड़कर सभी नोट  आरबीआई बैंक छपता है।  भारतीय करेंसी का  सारा डिसीजन  आरबीआई बैंक ही लेता है। इसमें सरकार थोड़ा बहुत हस्तक्षेप कर सकती है।


भारत में खराब नोटों का क्या होता है?

जब नोट पुरानी हो जाते हैं  तो उन्हें आरबीआई में भेज दिया जाता है  और उसके बाद उन पुराने नोटों की जांच की जाती है  और उसके बदले नए नोट छापे जाते हैं।पुराने नोट के कोड को  नए नोट में  ऐड कर दिया जाता है।अब आपको पता चल गया होगा  कि भारत सरकार  या आरबीआई अनलिमिटेड पैसा छाप कर सब को अमीर क्यों नहीं बना देती।  भारत ही नहीं बल्कि विश्व का कोई भी देश  अपने देश में अनलिमिटेड पैसा नहीं छपता है।

इतिहास इसका सबसे बड़ा गवाह है।