chandrayaan-1


चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन चंद्रयान-1 है और यह विश्व का 68 वा अभियान है। भारत ने अपना पहला चंद्रयान का परीक्षण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्टूबर 2018 को ध्रुवीय उपग्रह परीक्षण वाहन pslv-c11 के जरिए किया था। या चंद्रमा अभियान सोवियत संघ ने 2 जनवरी 1959 को भेजा था एवं दूसरा चंद्र अभियान 3 मार्च 1959 को अमेरिका ने भेजा। अमेरिका यूरोप रूस जापान 3:00 के बाद भारत छटा ऐसा देश है जो चंद्रमा के लिए यान भेजने में सफल रहा।

11 पेलोड युक्त चंद्रयान-1 से सिग्नल प्राप्त करने के लिए 32 मीटर व्यास का एक विशाल एंटीना की स्थापना कर्नाटक में बेंगलुरु से 40 किलोमीटर ब्यालालू मैं की गई थी। यह  प्रथम अवसर था जब एक साथ ही 11 उपकरण विभिन्न अध्ययनों के लिए किसी यान के साथ भेजे गए। भारत का पहला चंद्र अभियान चंद्रयान-1 अपने साथ राष्ट्रीय दिवस रंगिकू भी लेकर गया था जिसे मून इंस्पेक्टर प्रोब चंद्रमा की सतह पर स्थापित किया गया था।





चंद्रयान 11

22 जुलाई 2019 को भारतीय भूतटलीय उपग्रह

प्रेक्षण यान जीएसएलवी एमके 111 द्वारा chandrayaan-2 को सफलतापूर्वक परीक्षित किया गया। इसमें लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान का इस्तेमाल किया गया था। लैंडर विक्रम का सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग नहीं होने के कारण या अभियान पूर्ण सफल नहीं हो सका।



भारत का मंगल मिशन

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पूर्ण रूप से तैयार मंगल मिशन जिसे मंगलयान नाम दिया गया है 24 सितंबर 2014 को सुबह 8:00 बजे मंदिर की कक्षा में प्रवेश कर गया। साथ ही अपने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंचने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया।


इसरो द्वारा मंगलयान नामक अपनी अंतरिक्ष परियोजना के अंतर्गत 5 नवंबर 2013 को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवी उपग्रह परीक्षण यान पीएसएलवी सी 25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। अमेरिका यूरोपीय संघ के बाद भारत मंगल की कक्षा में प्रवेश करने वाला पहला देश बन गया। भारत एशिया का पहला देश है जो मंगल की कक्षा में दाखिल हुआ है।

मंगल मिशन में टोटल 450 करोड़ रुपए का खर्च हुआ। मंगलयान के मंगल ग्रह से निकटतम स्थिति पर आने पर मात्र 365  किलोमीटर दूरी पर जबकि सब से दूर होने पर 800 किलोमीटर दूर रहेगा।

मंगलयान में लगी उपकरण का उपयोग भविष्य में मौसम और संचार उपग्रहों में किया जा सकेगा।


प्रेक्षण यान प्रौद्योगिकी (सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल slv-3)

धारण क्षमता वाले slv-3 के विकास से भारत ने परीक्षण ज्ञान प्रतियोगिता के क्षेत्र में कदम रखा तथा 18 जुलाई 1980 को slv-3 का सफल प्रायोगिक परीक्षण करके अपनी योग्यता को सिद्ध करते हुए स्वयं को अंतरिक्ष क्लब का छठा सदस्य बना लिया इस सदस्य से पहले 5 सदस्य थे रूस अमेरिका फ्रांस जापान एवं चीन। एसएलवी चार चरणों साधारण क्षमता का उपग्रह प्रक्षेपण यान था जो 40  किलोग्राम भार वर्ग के उपग्रह को पृथ्वी की निकली कक्षा में स्थापित कर सकता था। इसका ईंधन slv-3 का कुल 4 प्रायोगिक परीक्षण किया गया था। 17 अप्रैल 1983 को slv-3 की चतुर्थ एवं अंतिम उड़ान द्वारा रोहिणी आरएसडी को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद इस उपग्रह के  प्रेक्षण यान के कार्यक्रम को बंद कर दिया गया।


एसएलवी


संवर्धित उपग्रह परीक्षण यान अर्थात तो मैं slv-3 का ही संवर्धित रूप है। इसे 100 से 150 केकरा भार वर्ग के उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। यह 15 चरणों वाला संवर्धित उपग्रह प्रेक्षण यान है। ठोस प्रेरणादायक ईंधन से चलने वाला एसएलवी को प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्रो क्लासिकल टर्मिनेट पॉली ब्यू टाडायन चतुर्थ चरण के लिए एटीएस 20 का प्रयोग किया गया था।



पीएसएलवी


1200 भार वर्ग तक के दूर संवेदी उपग्रह को 900 किमी ध्रुवी सूर्य समकालीन कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से पीएसएलवी का देश में विकास किया गया। पीएसएलवी 1 चार चरणों वाला ध्रुवीय उपग्रह है जिसके प्रथम एवं तृतीय चरण में ठोस का प्रयोग तथा द्वितीय एवं चतुर में द्रव प्रणोदक का उपयोग किया जाता है। ठोस तथ्य के अंदर हाइड्रोक्लोरिक टर्मिनेट का इस्तेमाल किया जाता है जबकि द्रविड़ के रूप में मुख्य रूप से आने सिमिट्रिकल डाई मिठाई हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है।

पीएसएलवी की कुल 3  दान कराई गई है जिसमें प्रथम उड़ान असफल तथा द्वितीय एवं तृतीय उड़ान पूर्णता सफल सिद्ध हुए।


पीएसएलवी द्वारा प्रेषित भारतीय दूर संवेदी योगी की परीक्षण उपग्रह टीवीएस भारत का पहला सैनिक उपग्रह है जो देश की समुद्री इलाकों और विशेषकर चीन एवं पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा  किसी घुसपैठ पर नजर रखता है।