उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना


उत्तराखंड भारत के उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित राज्य हैं ।

उत्तराखंड राज्य 28'43 से 31°27 अक्षांश में स्थित है।

राज्य का अक्षांशीय विस्तार 2°44 है।

राज्य का 77°34 से 81°27 सागर है।

राज्य का देशांतरीय विस्तार 3°28 है।

उत्तराखंड राज्य का आकार लगभग आयताकार का है।

पूर्व से पश्चिम राज्य की कुल लंबाई 358 किलोमीटर है।

उत्तराखंड राज्य की उत्तर से दक्षिण की लंबाई 320 किलोमीटर है।

उत्तराखंड राज्य का कुल क्षेत्रफल 53463 वर्ग किलोमीटर है जो कुरेशिया देश का क्षेत्रफल।

उत्तराखंड राज्य का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69% है। क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड राज्य देश का 18 वा स्थान और केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर 20 स्थान है। के कुल क्षेत्रफल का 86.07% क्षेत्र है जो 46,035 वर्ग किलोमीटर है और राज्य का कुल मैदानी क्षेत्रफल 13.93% मैदानी भाग है जिसका क्षेत्रफल 7448 वर्ग मीटर है।




उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक सीमाएं

राज्य के उत्तर में वृद्धि मारे वह दक्षिण पश्चिम में शिवालिक श्रेणी के तथा दक्षिण पूर्व में तराई खेत्र स्थित है क्षेत्र स्थित है।

राज्य की पूरी सीमा काली नदी तथा पश्चिमी सीमा टोंस के द्वारा निर्धारित होती है।

पूर्व में नेपाल के साथ उत्तराखंड के तीन जनपद पिथौरागढ़ चंपावत उधम सिंह नगर सीमा बनाते हैं और उत्तर पश्चिम में हिमाचल प्रदेश की सीमाएं देहरादून और उत्तरकाशी बनाते हैं।

राज्य के उत्तर में हिमालय पर तिब्बत एवं चीन स्थित है राज्य के तीन जनपद पिथौरागढ़ चमोली उत्तरकाशी सीमाएं बनाते हैं।

उत्तराखंड राज्य की 350 किलोमीटर की सीमा चीन देश से लगती है।

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर शिमला और किन्नौर उत्तराखंड से अपनी सीमाएं लगाते हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मुजफ्फरनगर बिजनौर मुरादाबाद रामपुर व बरेली तथा पीलीभीत 7 जिलों की सीमा उत्तराखंड राज्य से लगती है।

सहारनपुर मुज़फ़्फ़रपुर वह बिजनौर जिले की सीमा हरिद्वार से लगती है।

देहरादून से केवल सहारनपुर जनपद की सीमा लगती है। पौड़ी गढ़वाल और नैनीताल जिले से केवल बिजनौर की सीमा लगती है।

उत्तर प्रदेश से लगने वाले राज्य के पांच जनपद पूरब से पश्चिम उधम सिंह नगर नैनीताल पौड़ी हरिद्वार व देहरादून है।

पिथौरागढ़ जिला राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा वाला सबसे बड़ा जिला है।


उत्तराखंड राज्य की आंतरिक सीमाएं

उत्तराखंड में 2 मंडल और 13 जनपद है और मैं पहाड़ी जनपद की 11 और 2 जनपद मैदानी है चार आंतरिक जिलों में टिहरी रुद्रप्रयाग बागेश्वर अल्मोड़ा है।

गढ़वाल मंडल में कुमाऊं मंडल की 22 जिले आंतरिक जिले हैं।

गढ़वाल मंडल की सीमा कुमाऊं मंडल के 4 जनपथ से लगती है। गढ़वाल मंडल के 2 जिले चमोली व पौड़ी कुमाऊं मंडल से लगते हैं।

चमोली जिले से कुमाऊं मंडल के तीन जनपद लगते हैं।

सर्वाधिक 7 जिले की सीमा थोड़ी सी लगती है।

चमोली और अल्मोड़ा जिले से छह छह जिलों की सीमाएं लगती है।

सन 2000 में उत्तराखंड देश का 11 हिमालय राज्य बना लेकिन 2021 के बाद उत्तराखंड देश का 10 हिमालय राज्य हैं।


उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन

उत्तराखंड राज्य को 8 भौगोलिक प्रदेशों में बांटा गया है।


ट्रांस हिमालय

ट्रांस हिमालय क्षेत्र उसे कहते हैं जिसका उद्भव हिमालय से पहले हुआ है ट्रांस हिमालय को तिब्बती हिमालया टेथीस हिमालय भी कहा जाता है।

राज्य में ट्रांस हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत के जैक्सर श्रेणी आती है। उत्तराखंड का माना नीति, किंगरी भिंगरी तथा लिपुलेख दर्रा ट्रांस हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं।

भारत में ट्रांस हिमालय के अंतर्गत का कोरम कैलाश और लद्दाख श्रेणी आती है।

भारत की सबसे ऊंची चोटी गॉडविन ऑस्टिन K2 कार कोरम की सबसे ऊंची चोटी है।

ट्रांस हिमालय अवसादी चट्टानों से मिलकर बना है।

ट्रांस हिमालय श्रेणी सत्य ब्रह्मपुत्र व सिंधु जैसी पूर्व वती नदी को जन्म देती है।

सच्चर जिन व हिंज लाइन के द्वारा ट्रांस हिमालय से ग्रेटर हिमालय या वृहत हिमालय अलग होता है।


ग्रेट हिमालयन या बृहत हिमालय

राज्य में वृहत हिमालय क्षेत्र की पर्वतों की ऊंचाई 4500 मीटर से 7817 मीटर तक की है।

व्रत हिमालय को हिमाद्री या उच्च हिमालय भी कहा जाता है और राज्य में उच्च हिमालय की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी है। राज्य में वृहत हिमालय पूरब से पश्चिम की ओर तक 6 जिलों में फैला हुआ है।

वृहत हिमालय के निचले भागों में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते हैं जिन्हें बुग्याल या पयार कहते हैं।

राज्य में सबसे कम वर्षा वृहत हिमालय हिमालय में होती है और ऊपरी क्षेत्रों में 40 से 80 सेंटीमीटर की वर्षा होती है।

4200 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हिमानी जलवायु पाई जाती है उच्च हिमालई क्षेत्र में स्थाई हिम रेखा 4000 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है। वृहत हिमालय के मूल निवासी भूटिया लोग कहलाते हैं और सार्वजनिक जनसंख्या महा हिमालय में भूटिया लोगों की है क्योंकि इनमें ऋतु प्रवास पाया जाता है।

राज्य में पाए जाने वाले हिमनद जैसे गंगोत्री मिलम आदि

वृहत हिमालय के अंतर्गत आते हैं। 

वृहत हिमालय और मध्य हिमालय को मेन सेंट्रल थ्रस्ट केंद्रीय भृंश रेखा अलग करती है।


लघु या मध्य हिमालय क्षेत्र

मध्य हिमालय की औसत ऊंचाई लगभग 1800 se 3000 मीटर है और राज्य में मध्य मारे क्षेत्र की ऊंचाई 12:00 सौ से 45 मीटर तक की है। राज्य का पूर्वी छोर चंपावत से लेकर पश्चिमी छोर देहरादून तक 9 जिलों में फैला हुआ है।

मसूरी, देवन, रानीखेत, दुधाटोली, बिनसर द्रोणागिरी मध्य हिमालई क्षेत्र में आते हैं मध्य हिमालय क्षेत्र में जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।

मध्य हिमालय से नयार नदी व सरयू नदी और पश्चिमी रामगंगा ओर लधिया नदी निकलती है।

नैनीताल में पाए जाने वाले ताल सभी मध्यमा ले क्षेत्र में आते हैं।

अट्ठारह सौ से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई पर शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है और यहां पर शीतोष्ण वन और कोंधारी वन पाए जाते हैं। मध्य हिमालय के पर्वती क्षेत्रों में घास के मैदान पाए जाते हैं जिन्हें बुग्याल कहते हैं। कश्मीर में घास के मैदानों को मरग कहते हैं। बुग्याल को पशु चारा का स्वर्ग कहते हैं और यहां पर अल्पाइन जलवायु पाई जाती है। हिमालय की श्रेणी में शिमला बसा हुआ है। मध्य हिमालय और शिवालिक हिमालय के बीच मेन सीमांत दरार मेन बाउंड्री फॉल्ट है।



उत्तराखंड का पामीर दुधाटोली श्रंखला

दुधाटोली श्रंखला राज्य के मध्य लघु हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

दुधाटोली श्रंखला अल्मोड़ा, चमोली और पौड़ी जिले में फैली हुई है और यहां से पांच नदियों का उद्गम होता है जो पश्चिमी रामगंगा, आटा गाड़, वुनो, पश्चिमी ना यार वह पूर्वी नायर और पूर्वी नायार। दुधाटोली श्रंखला के तली पर दुग्ध ताल स्थित है और दुधाटोली क्षेत्र के आसपास कोडियाबड़ में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की समाधि है।


दून या द्वार क्षेत्र

शिवालिक श्रेणी के बीच पाई जाने वाली चौरास घाटियों को दुन कहा जाता है। पूर्वोत्तर भाग में दून घाटियों को द्वार कहते हैं। दून घाटियों की औसत ऊंचाई 350 मीटर से लेकर 750 मीटर तक की बीच होती है राज्य का सबसे बड़ा दुन जिसकी लंबाई 75 किलोमीटर व चौड़ाई 24 से 32 किलोमीटर है। पातली तथा कोटा नामक दुनी नैनीताल में स्थित है और इसी के बीच कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान भी है। कोठारी और चोखम नामक दुन पौड़ी गढ़वाल में स्थित है और दून घाटियों में मानव जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां पाई जाती है। दून घाटियों में उपोष्ण प्रकार की जलवायु पाई जाती है और सर्वाधिक भूस्खलन की घटनाएं दुन क्षेत्रों में हिमालय से होती है।


शिवालिक क्षेत्र

शिवालिक क्षेत्र को ब्रह्म हिमालय या हिमालय का पाद भी कहते हैं। शिवालिक हिमालय की नवीनतम श्रेणी है और नवीन होने के कारण इसमें जीवाश्म पाए जाते हैं। शिवालिक श्रेणी का प्राचीन नाम मैनाक पर्वत है और शिवालिक शब्द का अर्थ शिव की भेह है।

शिवालिक श्रेणी की औसत ऊंचाई 700 से 12 साल तक की होती है और शिवालिक क्षेत्र में भूस्खलन व कटाव के कारण गहरी घाटियां पाई जाती हैं राज्य में सर्वाधिक वर्षा शिवालिक हिमालय क्षेत्र में होती है यहां पर 200 से लेकर 250 मीटर तक की वर्षा होती है। राज्य के सार्वजनिक पर्यटन केंद्र सर्वाधिक क्षेत्र में पाए जाते हैं और खनिज की दृष्टि से राज्य का सर्वाधिक क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है शिवालिक श्रेणी मध्य हिमालय और वृहत सीमांत दरार या ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट से अलग होती है। शिवालिक क्षेत्रों में शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है।

भाबर क्षेत्र

शिवालिक के दक्षिण पर स्थित भाबर क्षेत्र की भूमि ओवर खबर व मिट्टी कंकड़ पत्थर व मोटे बालू से युक्त होती है और इस क्षेत्र में नदियों का जल अदृश्य होकर नीचे रहता है क्षेत्र में उपोषण प्रकार की जलवायु पाई जाती है।


तराई क्षेत्र

तराई क्षेत्र का निर्माण महीन कांड वाले अवसादी चट्टानों से हुआ तराई क्षेत्र में दलदली प्रकार की मिट्टी पाई जाती है और तराई क्षेत्र में पताल तोड़ कोई भी पाए जाते हैं राज्य की पौड़ी व नैनीताल जिले के दक्षिणी क्षेत्र और उधम सिंह नगर को तराई भाबर कहते है।

राज्य के तराई क्षेत्र में बंगाल हरियाणा पंजाब के लोग भी निवास करते हैं। दलदली मिट्टी होने के कारण यहां धान व गन्ना की उत्पादकता अधिक होती है अप्रैल माह के तराई क्षेत्र में सूरजमुखी का फूल खिलने की अवस्था होती है और तराई क्षेत्र में उपोस प्रकार की जलवायु मिलती है।


गंगा का मैदानी क्षेत्र

राज्य के हरिद्वार जिले का अधिकांश भाग गंगा के मैदानी क्षेत्र का हिस्सा है रानी भूभाग के यहां तक बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता।