उत्तराखंड राज्य प्रतीक चिन्ह


उत्तराखंड शासन द्वारा प्रतीक चिन्ह का निर्धारण सन2001 में किया गया था और uttrakhndh के राज्य प्रतीक चिन्ह इस प्रकार है:


उत्तराखंड का राज्य चिन्ह

शासकीय कार्यों में जिस चिन्ह का प्रयोग करते हैं वह राज्य में होता है और राजकीय चिन्ह इवेकेयर कार्य समचतुर्भुज जैसा प्रतीत होता है। राज्य चिह्न में तीन पर्वत चुटिया दिखाई देती हैं जिसमें बीच वाली चोटी पर लाल पृष्ठ में अशोक की लाट अंकित है लाट के नीचे संस्कृत शब्द भाषा में सत्यमेव जयते लिखा है जो मुंडक के उपनिषद से लिया गया है।

पृष्ठ का लाल रंग आंदोलनकारियों के रक्त का प्रतीक है। राज्य चिन्ह के बीच वाले भाग में श्वेत पृष्ठ पर चार जल धाराओं को नीले रंग में दिखाया गया है जलधाराएं राज्य की गंगा यमुना रामगंगा और काली नदियां को दर्शाती है। राज्य चिन्ह के सबसे नीचे नीले रंग का उत्तराखंड राज्य अंकित है।


उत्तराखंड राज्य गीत

उत्तराखंड का राज्य गीत उत्तराखंड देव भूमि मातृभूमि शत शत वंदन अभिनंदन है और उत्तराखंड का राज्य गीत 6 फरवरी 2016 को हेमंत बिष्ट द्वारा लिखा गया और उत्तराखंड राज्य की 9 मिनट की अवधि का है और इस गीत का चयन समिति के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह बटोही थे और इस राज्य गीत की आवाज में श्री नरेंद्र सिंह नेगी और अनुराधा निराला जी की आवाज है।


उत्तराखंड राज्य पशु कस्तूरी मृग 

कस्तूरी मृग को हिमालयन मस्त डिअर भी कहा जाता है।

कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मस्कस काईसोगास्ट्र है और कस्तूरी मृग राज्य के जंगलों में 3600 मीटर से 4400 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। राज्य में कस्तूरी मृग की 4 प्रजातियां है और कस्तूरी मृग अंगुलोता कुल व मिशुडे परिवार का सदस्य है कस्तूरी मृग बहू याद में केदारनाथ फूलों की घाटी पिथौरागढ़ उत्तरकाशी में पाया जाता है इसके अलावा कस्तूरी मृग हिमाचल प्रदेश सिक्किम कश्मीर में भी पाए जाते हैं।



कस्तूरी मृग की विशेषता


कस्तूरी मृग का रंग भूरा तथा उसमें काले पीले रंग के धब्बे पाए जाते हैं।


कस्तूरी मृग के पैर में चार खुर तू बाहर निकले निकोले दांत और लगभग 20 इंच ऊंचाई होती है।


कस्तूरी मृग के सिंह नहीं होते हैं आत्म रक्षक के लिए दो निकोले दांत होते हैं।


कस्तूरी मृग के पीछे के पांव आगे के पांव की अपेक्षा लंबे होते हैं।


कस्तूरी मृग की यह विशेषता है कि वह अपना निवास स्थान नहीं छोड़ता है।


कस्तूरी मृग को जुगाली करने वाला मरग कहां जाता है और कस्तूरी मृग की सूंघने की शक्ति ज्यादा होती है।


मनोज की औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है और कस्तूरी मृग 6 माह में गर्भ धारण करते हैं।


कस्तूरी मृग का भोजन केदार पाती है और कस्तूरी मरग के ग्रंथि में कस्तूरी होती है और तीन-तीन वर्ष के अंतराल में 30 से 45 ग्राम तक प्राप्त किया जाता है। कस्तूरी तीन प्रकार की होती है नेपाल की कस्तूरी कपिल कश्मीर की कस्तूरी पिंगल तथा शिक्षण की कस्तूरी कृष्णा होती है।


औषधि उद्योग में कस्तूरी का प्रयोग दमा मिर्गी हृदय संबंधी रोगों की दवाई बनाने के लिए किया जाता है कस्तूरी का रासायनिक रूप कस्तूरी मिथाइल ट्राइक्लो पेंटा डेकेनाल है।


कस्तूरी मृग संरक्षण

कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए 1972 में केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई।

महरोली कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना 1977 में की गई जो बागेश्वर में है।

सार्वजनिक मात्रा में कस्तूरी मृग अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण पिथौरागढ़ में पाए जाते हैं।

चमोली जिले की काछोला खर्क में 1982 को कस्तूरी मृग प्रजनन संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई ओर

राज्य में सन 2005 तक  उत्तराखंड राज्य में 279 कस्तूरी मृग थे।


उत्तराखंड राज्य का पुष्प ब्रह्म कमल


ब्रह्म कमल राज्य के हिमालई क्षेत्रों में 4800 मीटर से 6000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।


ब्रह्म कमल का फूल एस्टरसी कुल का है। ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सोसुरिया अब्बेलेटा है। ब्रह्म कमल की अन्य प्रजातियां सहन कमल वह कस्तूरी कमल राज्य में मिलते हैं फेन कमल राज्य में सर्वाधिक ऊंचाई पर मिलता है जिस का वैज्ञानिक नाम सोसोरिया ग्रामीणीफोलिया है। ब्रह्मा कमल का स्थानीय नाम कुल पदम है। हिमाचल प्रदेश में ब्रह्म कमल को दूदा फूल कहा जाता है और कश्मीर में ब्रह्म कमल को गलगल कहा जाता है। ब्रह्म कमल की विश्व में 210 प्रजातियां हैं और उत्तराखंड में 24 प्रजातियां ब्रह्म कमल की पाई जाती है।

ब्रह्म कमल राज्य के फूलों की घाटी के दाना अथवा पिंडारी हिम्मत आदि क्षेत्रों में बहु यातायात में मिलता है। ब्रह्म कमल महानंदा का प्रिय पुष्प है और नंदा अष्टमी को तोड़े जाने का महत्व है रामकमल को हिमालय पुष्पों का सम्राट कहा जाता है।


ब्रह्म कमल की विशेषता


ब्रह्म कमल बैगनी रंग का होता है और ब्रह्म कमल पहली की ऊंचाई 70 से 80 मीटर होती है तथा ब्रह्म कमल फूल खिलने का समय जुलाई से सितंबर होता है और ब्रह्म कमल के पौधे 1 वर्ष में केवल एक ही पुष्प आता है और ब्रह्म कमल का पुष्प अर्थ रात्रि में खिलता है ब्रह्म कमल पौधों को जड़ों को पीसकर हड्डी उपचार में प्रयोग किया जाता है।


उत्तराखंड राज्य वृक्ष बुरांश

बुरांश वृक्ष 1500 से लेकर 4000 मीटर की ऊंचाई पर सदाबहार वृक्ष है इसका वानस्पतिक नाम अर्बोरियम है बुरांश एरिकेसाई कुल का है इसे हिमाचल प्रदेश में बुराशो जो कहते हैं और कन्नड़ मै बुरांस को बिल्ली कहा जाता है। बुरांश वृक्ष नेपाल का राष्ट्रीय पुष्प है जहां 

बुरांश वृक्ष गुरांस कहा जाता है बुरास हिमाचल प्रदेश नागालैंड का राष्ट्रीय पुष्प है मेघालय में बुरास को तीन शा कहा जाता है भारत में बुरांश वृक्ष की 57 प्रजातियां पाई जाती है भारत में सर्वप्रथम बुरांश के रोडाइडद्रन आरबेरियम प्रजाति की खोज श्रीनगर जम्मू में हुई।


बुरांश वृक्ष की विशेषता

बुरांश के फूलों का चटक लाल रंग होता है और सफेद बुरांश 11000 ऊंचाई पर मिलते हैं और फूल खिलने का समय फरवरी से अप्रैल का है बुरास में मिथेनॉल पाया जाता है जो डायबिटीज के लिए फायदेमंद है।

बुरांश वृक्ष को वन एक्ट सन 1974 के तहत (संरक्षित वृक्ष) घोषित किया गया है।


राज्य तितली कॉमन पीकॉक


उत्तराखंड की राज्य तितली 17 नवंबर 2016 को कॉमन पीकॉक को घोषित किया गया। कॉमन पीकॉक हिमालय क्षेत्र में 7000 फीट की ऊंचाई में मिलती है और कौन-कौन पीकॉक का वैज्ञानिक नाम पीपी पेपिलियो बायानार है 1996 को लिंबा पुस्तक में कॉमन पीकॉक की भारत की सबसे सुंदर परी का खिताब मिला और कॉमन पीकॉक टिमरू के पेड़ में अंडे देती है और उसी की पत्तियों को खाती है 2016 में देहरादून की लच्छीवाला में बटरफ्लाई पार्क खोला गया। कॉमन पीकॉक का जीवनकाल 30 से 35 दिन का होता है की सबसे बड़ी तितली ट्राइड्स डीडीहाट में मिली जिसे गोल्डन बर्ड बिन कहते हैं।





उत्तराखंड राज्य का वाद्य यंत्र ढोला

भंडारी कमेटी की सिफारिश पर तत्कालीन मुख्यमंत्री रावत ने 2015 में ढोल को राज्य वाद्य यंत्र घोषित किया और धूल एक प्राचीन वाद्य यंत्र है जिसको तांबे पीतल व चांदी धातु पर बकरी की खाल लगाकर बनाया जाता है। ढोल से 22 साल बजाए जाते हैं और ढोल से नौबत या निर्मिती आदि ताल बजाए जाते हैं। नोबात प्रातः काल में ऊंची जाति के लोग 22 पड़ताल में बजाते हैं काम शुरू होने में पहले बद्दें ताल बजाई जाती है और राज्य में एकमात्र ढोल सागर के ज्ञाता उत्तम दास हैं।


उत्तराखंड का राज्य खेल फुटबॉल है जिसे 2001 में घोषित किया गया और उत्तराखंड राजभाषा हिंदी है दूसरी संस्कृत। संस्कृत को 2010 में दूसरी राज्य भाषा घोषित किया गया।